हां दीदी ……..

हां दीदी ……..

कई बार जिंदगी में हम देखते हैं कि कभी कभी कोई बात जो बड़ी से बड़ी मैनेजमेंट की पुस्तक नहीं समझा पाती वह एक सामान्य सी घटना हमें सिखा देती है।

कुछ दिनों पहले की बात है मैं अपने एक दोस्त के घर गया हुआ था और मेरा एक दिन वहां रुकना हुआ। सुबह-सुबह मेरी नींद खुली तो मुझे दो औरतों की बात सुनाई थी। पता चला कि भाभी जी अपनी काम करने वाली नौकरानी से बात कर रही थी। बातचीत का विषय घरेलू किस्म की बातें थी और मैंने देखा कि वे दोनों आपस में हर बात में एक दूसरे को सपोर्ट कर रही थी। कोई भी किसी की बात को काट नहीं रही थी। नौकरानी हर बात में या अधिकांश बात में हां दीदी बोलती थी और भाभीजी भी अपनी नौकरानी की हर बात को या तो सपोर्ट करती थी या उससे मिलती जुलती बात करती थी। 

इससे क्या हम मैनेजमेंट का एक महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं कि बातचीत में सफलता या अच्छे संबंध बनाने के लिए हां दीदी शब्द कितना महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि सामान्य जीवन में बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जिनका सही गलत नहीं होता है उन्हें हम ऐसे ही बात करने के लिए बोलते हैं। इनको मान लेने में किसी को कोई नुकसान नहीं होता है। हाँ यहाँ बस इतना सा ध्यान रखा जाए कि इसका प्रयोग चापलूसी की तरह न किया जाए। 

इसके बाद मैंने भी यदा कदा घर की बातों में हां दीदी जुमले का इस्तेमाल किया और अच्छा महसूस किया परन्तु इसका अंतिम निष्कर्ष क्या निकलेगा यह समय और इसके पढ़ने वाले बताएंगे।

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