कुछ दिन पहले शिवानी बता रही थीं कि एक बार ब्रम्हाकुमारी के केंद्र में कुछ मेहमान आए थे। वे सब केंद्र में रुके और दादी से मुलाकात किये फिर उन्होंने दादी से आसपास की जगह देखने की इच्छा व्यक्त की। दादी ने अपने केंद्र के एक लड़के को बुलाकर कहा कि इनको आसपास की जगह घुमा लाओ। उन्होंने लड़के से यह भी कहा कि खुश होकर घुमाना। फिर जब वे लोग चले गए तो दादी ने उस लड़के से पूछा कि सफर कैसा रहा। लड़के ने बताया कि हां दादी मैंने मैंने उन्हें बहुत अच्छे से सब जगह दिखाई और उन सब को बहुत खुश कर दिया। यह सुनकर दादी ने उससे कहा कि मैंने तुम्हें यह नहीं कहा था कि उनको खुश करना है मैंने तुम्हें कहा था कि उनको खुश होकर घुमाना।
दादी की यह बात हमें क्या सिखाती है कि हमें हर काम खुश होकर करना चाहिए। यदि हम कोई भी काम करते हुए ऐसे रहते हैं तो हम महसूस करेंगे कि अब हमें कोई भी कम करते हुए मेहनत करने की आवश्यकता नहीं पड़ रही है और हमारा हर काम इफर्टलेसली हो रहा है। हम यदि खुश होकर रहते हैं तो हम जिनके भी साथ में होंगे उन्हें हमें खुश करने के लिए मेहनत करने के लिए कोई प्रयास करने की जरूरत नहीं पड़ेगी वे हमसे अपने आप ही खुश रहेंगे।
हर काम के दो पड़ाव होते हैं एक काम करने की प्रक्रिया और दूसरा काम का पूरा होना। इसे हम सामान्य भाषा में यात्रा और मंजिल कह सकते हैं। किसी भी सफ़र में यात्रा का पूरा होना जितना महत्वपूर्ण होता है उतना ही जरुरी और आवश्यक उस सफ़र का अच्छी तरह से कटना भी होता है।
इसी तरह से जीवन के सफ़र में भी हमें हर दिन लक्ष्यों के रूप में अनेक छोटे छोटे पड़ाव तय करने होते हैं। इन सारे छोटे छोटे लक्ष्यों से मिलकर ही पूरा जीवन बनता है। यदि हम इन सारे छोटे छोटे पड़ावों की यात्रा के दौरान खुश रहेंगे तो अंत में हमारी पूरी जीवन यात्रा खुशनुमा और मजेदार होगी। इस तरह से हमें मंजिल के साथ-साथ यात्रा का भी आनंद लेना है और यही जीवन की यात्रा का भी उद्देश्य होना चाहिए।
यात्रा और मंजिल
बहुत ही अच्छा लेख है।
वाकई में यदि हम अपने किसी भी काम को खुश होकर करेंगे तो हमे बहुत ही ज्यादा खुशी की अनुभूति होगी।
दिनेश आपके इस लेख के लिए बहुत धन्यवाद।
हौसला बढ़ाने के लिए आपका आभारी हूँ