सभी की जिन्दगी में कभी न कभी ऐसे अवसर आ जाते हैं जब हम एक उहापोह में फंस जाते हैं और हमें कुछ सूझता नहीं है कि क्या किया जाए और क्या न किया जाए। फिर हम ओवरथिंकिंग के जाल में फंस जाते हैं। अब क्या करें। कितने सारे रास्ते दिखाई देते हैं। इधर जाएं या उधर जाएं। मन में कई तरह की उलझनें हैं कि क्या करूं, कहां जाऊं, क्या ना करूं, क्या होगा, ऐसा वैसा, यह वह, इत्यादि।
कई दिनों से मेरे भी ब्लॉग में भी एक ब्रेक आ गया था। मैं बहुत दिनों से कुछ भी नहीं लिख पाया था। कई बार कुछ लिखने की सोचता था लेकिन मूड ही नहीं बनता था। आज कल के चक्कर में इस बीच में महीनों निकल गए। कई बार मेरा लड़का पूछता था कि पापा आप के ब्लॉग का क्या हुआ। मैं उसे बोल देता था कि करूंगा।
लिखना पढ़ना यह एक ऐसी चीज है जो कि मानसिक स्तर पर होती है। यह कोई गड्ढा खोदना जैसा काम नहीं है कि हमें बोला जाए कि एक 3 बाई 4 फीट साइज़ का और 5 फीट गहरा गड्ढा खोदना है तो इसमें यह अंदाज लगाया जा सकता है कि यह काम इतने समय में हो ही जायेगा। लेकिन मानसिक स्तर के काम में और खासकर लिखने, पढ़ने, समझने के काम में हम मशीनी रूप से काम नहीं कर सकते हैं। कई बार हम वह काम करते दिखेंगे लेकिन वास्तव में यदि हमारा मन उस काम के साथ नहीं है तो वह काम वास्तव में नहीं हो रहा होता है। इससे बचने के लिए क्या करें क्या हम प्रेरणा का या सही समय का इंतजार करें या काम में लग जाएं। इसमें दोनों तरह के विचार दिए गए हैं। कई लोग कहते हैं कि वे किसी प्रेरणा का इंतजार नहीं करते वे कागज कलम लेकर या कंप्यूटर चालू करके टाइपिंग करना शुरू कर देते हैं फिर धीरे-धीरे उनके विचार आने लग जाते हैं और एक फ्लो बन जाता है। यदि वे प्रेरणा के इंतजार में बैठे रहेंगे तो पता चला कि लगातार बैठे ही हैं और कुछ भी काम नहीं हो रहा है उनका।
मुझे लिखने पढ़ने का बचपन से बहुत शौक रहा है और मैं हमेशा ही कुछ ना कुछ पढ़ते रहा हूं। लेकिन बीच में मेरे कुछ साल ऐसे निकले थे कि मैं किताबें बहुत कम पढ़ पाया। यूं कंप्यूटर में कुछ पीडीएफ में बुक्स कभी-कभी पढ़ लेता था पर वह एक सिस्टमैटिक तरीके से नहीं हो पाया। फिर अभी कुछ दिनों पहले मैंने महसूस किया कि यह ठीक नहीं है और मैंने पढ़ने का लक्ष्य बनाया। फिर मैं एक दो किताबें पढ़ा। लेकिन फिर से ब्रेक आ गया था। फिर मैंने सोचा कि मेरा जैसा टेंपरामेंट और मानसिक स्थिति है उसके अनुसार मुझे पढ़ने की आदत को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए और कुछ ना कुछ पढ़ने के लिए मुझे रोज समय देना चाहिए। यह मुझे व्यस्त भी रखेगा और इससे मैं इधर-उधर के फालतू विचारों से भी बचकर रहूँगा और इससे मेरी क्रिएटिविटी भी बढ़ेगी।
फिर मैंने एक दिन तय किया कि अब ऐसा नहीं चलेगा। मैं तय किया कि अब मुझे रोज अपने आप को शांत और मेंटेन रखकर स्थिरता के साथ अपना काम करना होगा। इसमें अब लापरवाही, टालमटोल और आलस्य नहीं चलेगा। अब मुझे हमेशा ताजगीपूर्ण रहकर अपना काम करते रहना होगा। मेरा सारा काम मानसिक स्तर का है तो मुझे सोच के स्तर पर अपने विचारों को अच्छे रखते हुए अपने काम को अंजाम देना होगा। मुझे मिले हुए हर पल का सदुपयोग करना होगा। मुझे सिर्फ वही विचार करने की आदत डालनी होगी जो कि मेरे लिए उपजाऊ, लाभदायक, खुशी देने वाले और भविष्य में मेरी उन्नति का कारण बनने वाले हों। इसके अलावा बाकी सब विचारों को मुझे तिलांजलि देनी होगी और जैसे ही वे आते हैं उन्हें आने से रोकना होगा। अब एक पल के लिए भी ऐसे विचार नहीं चलेंगे।
फिर मैंने अपने लिखने की फिर से शुरुआत कर दी। मैंने तय किया कि इसको अब रेगुलर रखूंगा और कोशिश करूंगा कि रोज एक निश्चित समय इसको दूंगा। तभी विचारों का फ्लो बनेगा और धीरे-धीरे मन को ऐसे सोचने की आदत पड़ जाएगी। फिर शायद विचारों का प्रवाह बढ़ने लगेगा और हो सकता है कि मैं बहुत जल्दी ही एक बुक भी पूरी लिख सकूंगा। ब्लॉग के लिए रोज एक से ज्यादा आर्टिकल भी मैं लिख सकूंगा।
आज 16 जुलाई वर्ष 2021 है। मैंने अगले डेढ़ सालों के लिए अभी लक्ष्य बनाया है। मैं अपनी इस योजना में कितना सफल हो सका यह आगे आने वाला वक्त बताएगा।
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