एक फुदकती हुई चिड़िया
कुछ दिनों पहले लाॅक डाउन के समय एक चिड़िया को खेलते देखकर मैंने एक कविता लिखी थी जिससे यहां पोस्ट कर रहा हूं –
लॉक डाउन का समय था,
खिड़की पर यूँ ही खड़ा हो गया,
बाहर नजर पड़ी तो एक सुंदर सी छोटी सी चिड़िया,
यूँ ही फुदक रही थी,
यहाँ से वहां, इस डाली से उस डाली,
कभी आसमान की तरफ देखती थी,
कभी कुछ चुगने लगती थी,
कभी गमले में से एक बूंद पानी चखती थी,
वह यूँ ही बहुत देर कुछ कुछ करती रही,
अपने में मस्त,
लॉक डाउन से अनजान,
छोटे बच्चों सी बेफिक्र,
कल की चिंता से दूर,
यूँ ही फुदकती फुदकती कुछ देर में उड़ गई।
मैं कुछ देर और वहीं खड़ा रहा,
सब याद करता रहा,
मन एक अनजानी सी ख़ुशी में खो गया,
लगा अन्दर में जमा तनाव और कार्टिसोल घुल गया,
और अच्छे हार्मोन में बदल गया,
आनंद ही आनंद सा चारों ओर छा गया।
परमानन्द …….
परम आनंद ………
प र म आ नं द …..
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