सच्ची ख़ुशी

जिस कालोनी में हम रहते हैं वहां अभी भी कुछ मकान बन रहे हैं। इसलिए वहां काम करने वाले मजदूर भी वहीं छोटी-छोटी झोपड़ी बनाकर रहते हैं।  उनके साथ उनका परिवार भी रहता है। कॉलोनी के गेट के पास एक किराना सामान की दुकान भी है। मैं सुबह सुबह घूमने जाता था तो अक्सर वहां पर एक मजदूर के दो छोटे-छोटे बच्चे मिलते थे। उन दोनों बच्चों की उम्र 2 से 3 साल के बीच की थी। दोनों भाई बहन थे और एक दूसरे का हाथ पकड़ कर खड़े रहते थे। उसी समय वह दुकान भी खुलती थी। दोनों उस दुकान के पास खड़े रहते थे और उस दुकान के खुलने का इंतजार करते थे। जैसे ही वह दुकान खुलती थी वह दोनों बहुत खुश हो जाते थे और दौड़कर वहां जाते थे। वहां दोनों एक एक चॉकलेट खरीदते थे और बहुत खुश होकर वहां से आते थे। 

धीरे धीरे मुझे समझ में आया कि उन दोनों बच्चों को रोज रात में बोला जाता था कि सुबह तुम दोनों को एक एक रुपया मिलेगा जिससे तुम दोनों वहां जाकर चॉकलेट खाना। 

मुझे उन दोनों बच्चों के चेहरे का वह एक्सप्रेशन याद है कि वह छोटी सी चाकलेट भी उन्हें इतनी खुशी दे जाती थी जो कि हमें बड़ी बड़ी चीजें मिलने पर भी नहीं होती है। मुझे पूरी उम्मीद है कि रात को सोते समय भी उनके पास सुबह होने का बेसब्री से इंतजार रहता होगा। ठीक वैसा ही जैसे हमें भी अपने अलग-अलग उम्र के पड़ाव पर अलग-अलग चीजों का इंतजार रहता है। यदि हमें हमारा भविष्य अच्छा दिखाई देता है तो वह इंतजार हमारे लिए बहुत मीठा होता है। इस इंतजार के दौरान हम कुछ कष्ट उठाने को भी तैयार रहते हैं।

यह घटना हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि खुशी बड़ी बड़ी चीजों की मोहताज नहीं होती है। यह हमें छोटी चीजों से भी मिल सकती है। यह पूरी तरह से हमारी मानसिकता पर निर्भर करती है कि हम उस चीज को कितना महत्व देते हैं। 

तो क्यों ना हम भी अपने जीवन की हर छोटी-छोटी चीज को भी महत्व देना प्रारंभ करें  और उनके प्रति कृतज्ञ भी हों।

हमें भी सच्ची ख़ुशी का अहसास होगा ……..

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